Monday 22 January 2018

माकड़ माई! माकड़ माई!

और इस बार ज़्यादा बड़ी गुस्ताख़ी की है,
दुनिया की विभिन्न संस्कृतियों और जातीय-जनजातीय परम्पराओं की लोक कथाओं में से इस चरित्र को ढूँढकर, इस चरित्र का एक-एक मोती इकट्ठा करके उसे इस कविता में पिरोने की कोशिश की है...
और साथ में ये भी कोशिश की है कि लोक कथाओं की तरह ही इसकी मासूमियत बरक़रार रहे..
हालाँकि अभी कच्ची हूँ, और शायद मुझे इन लोक कथाओं को छेड़ना भी चाहिए या नहीं, ये भी नहीं पता.. लेकिन फिर भी ये जुर्रत की है, क्यूँकि मुझे अपना घर और सुकून दोनों इन्हीं में मिलता है..


पेश है मेरी ये नयी कविता



कहानियों का पिटारा लेके_
देखो! देखो! कौन है आई..??!!
माकड़ माई! माकड़ माई!
अपने पिटारे के हर पहलू, हर कोने में_ _
कितनी ही अनगिनत कहानियां, वो है सजाकर लाई_!!
अरे देखो !! आई है माकड़ माई !

ऐसी कोई कहानी नहीं_
जो मिली उसके पिटारे में नहीं !

उसकी इन कहानियों में है_
कोई कहानी तितली जैसी
रंग-बिरंगी कोमल सी_
एक से दूसरे फूल तक
बस उड़ती जाती है_ _!
कोई कहानी चिड़िया जैसी_
गाती और चहचहाती है_!
कोई कहानी सांप सी रेंगती_
पूरे शरीर में सिहरन भर जाती है_!
तो कोई कहानी बब्बर शेर सी_
ज़ोर से दहाड़ती है _ !!
ऐसी ही रोमांचक कहानियाँ_
सुनाने को है वो फिर से आई_ _
दादी-नानी से भी लाड़ली_
माकड़ माई! माकड़ माई!

रात को जब, सब सोते है_
तब वह सबके सपनों को बुनती है_
अच्छे - मीठे सपनों को_
वह हम तक पहुँचाती है_!
और, काले - बुरे सपनों को वह_
उल्लू के साथ_
पहुँचाती है अपनी गुराहों में_
और कैद कर लेती है उन्हें_
मकड़ जाल से बनी सुराहों में_!
उसकी निगरानी में हमने
रातों को चैन की नींद है पाई_!!
अरे हाँ_!!
इस रात और बारिश को भी तो_
वो ही आकाश से माँगकर लाई_!
बड़े से, सफ़ेद आदम भेड़िये पर बैठकर
जो है आई_!
माकड़ माई! माकड़ माई!

ना जाने कितनी बूढ़ी है..??!!
मगर.. इतनी लम्बी उसकी ठोड़ी है..!!
अपने आठों हाथ-पैरों से वह_
सबका ताना-बाना बुनती रहती है_
इस उमर में भी वह
कभी एक जगह नहीं ठहरती है_!!
बच्चे, जानवर, पौधे, पत्थर,
सबकी कहानी वह लिखती है_!
और रात के घने अँधेरे में_
आकाश में जा_
तारों से बातें करती है_!!
और गरजते बादलों से
बिजलियाँ चुरा लाती है_!!
जो अँधेरे में भटके पथिकों को
रास्ता बतलाती है_!!
इसी अँधेरे जंगल में_
आज फिर एक बच्चा जन्मा_!
और उसको दी उसकी चीख़ सुनाई _
तो अपनी कहानियों का पिटारा लेके_
पानी पर चलकर_
जो दौड़ी-दौड़ी, भागी-भागी है आई_!!
वो है, माकड़ माई! माकड़ माई!

आकाश के गर्भ में बसे शहर की
वह इकलौती साम्राज्ञी है_!
अपनी आठों आँखों से जिसने
भूत, भविष्य और वर्तमान की_
हर एक घटना देखी है_!!
जिसके मधुर गीतों को सुन_
सुबह का सूरज उगता है_!
और रात का चाँद चमकता है_!!
किन्तु ये बंजारन फिर भी_
सिर्फ़, कहानियों की साम्राज्ञी ही कहाई_!!
उन्हीं कहानियों का पिटारा लेके
देखो! आज फिर से है जो आई_
माकड़ माई! माकड़ माई!

जिनको सुनने के लिये_
हम बच्चों के संग
हाथी, शेर, गिलहरी, खरगोश,
चिड़िया और तितली भी है आई_!!
यहाँ तक कि वो साँप भी आया_
जिसको देता नहीं सुनाई_!!
क्यूँकि_
कहानियों का कुछ ऐसा ही
रोमांचक ताना-बाना
बुनती है ये माकड़ माई_!!

जो सुनाती सबको, सबकी कहानियाँ_ !!
आज मैंने है उसकी कहानी सुनाई_ !!
अज़ीब है_ !! फिर भी सबकी लाड़ली_
है ये हमारी माकड़ माई_!!


-iCosmicDust (निकिता पोरवाल)







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