Saturday 12 December 2015

मेरा एक सहस्त्रवाँ जन्मदिवस...!


यह नील हरित समुद्र_ _, कितना मनोहारी एवं अद्वितीय दृष्टित होता है पूर्णिमा की रात्रि में इसका यह रूप_ और इसकी हर पल अविरत गति से क्रीड़ा करती ये लहरें_ _ कभी न ख़त्म होने वाले जोश और उत्साह का प्रतिरूप_ _, जिनके ऊपर चाँद भी आकाश के कोटि ताराक्रमों  साथ अठखेलियाँ करता प्रतीत होता है, मानों लहरों के इस नटखटपन और उत्साह को देखकर वह भी गगन से उतरकर उनके साथ अपने जीवन का ज़श्न मनाने आ गया हो। सहस्त्रों वर्षो का एक नयनाभिराम दृश्य.....।
सम्पूर्ण पृथ्वी बदल गयी, अगर कुछ नहीं बदला, तो वह है यह दृश्य...., वही दृश्य.. जिसे मैंने सहस्त्र वर्ष पहले अपने जीवन में प्रथम बार नेत्र खोलते ही देखा था और तभी से मैं इस प्रकृति का कायल हो गया था।
मेरे जन्म को सहस्त्र वर्ष बीत गये_ _, पता ही नहीं  चला_ _, ऐसा लग  रहा है मानों आज़ ही तो पैदा हुआ हूँ मैं_ _। हाँ यदि अंतर है तो सिर्फ इतना की उस समय मैं हथेली  अंगूठे जितना छोटा था और आज़ एक विशालकाय पाषाण समरूप हूँ।
इस नश्वर काया का आकार तो बढ़ गया, किन्तु बुद्धि_?  ज्ञान_? मानसिक विकास की ये महत्वपूर्ण कड़ियाँ तो लगता है आज भी वही है। इतने वर्षों से इस पृथ्वी का दर्शन करता रहा हूँ किन्तु आज़ भी मेरे लिये यह उतनी ही अनभिज्ञ है जितनी मेरे जन्म के समय मेरे लिये थी। और कोई जान भी कैसे  सकता है इसके बारे में...? हर पल, हर क्षण तो यह एक नवीन स्वरुप में प्रस्फुटित होती है।
इस अद्भुत जीवंत ग्रह पर ना जानें कितनी ही यात्राएँ मैंने की, अनगिनत जीव-जंतुओं, पशु-पक्षियों से भेंट की, मैत्री की, उनसे जीवन के मूल्यों के बारे में जाना, मनुष्यों के निरंतर परिवर्तित सांस्कृतिक, सामाजिक और वैज्ञानिक परिवेश का दर्शन करता रहा_ _ और इन्हीं सभी के मध्य मेरा जीवन अथाह मनोरंजन एवं खट्टे-मीठे अनुभवों को अनगिनत यादों में परिवर्तित कर गतिमान होता रहा_, ठीक इसी लहराते जलधि की तरह, जिसके अंदर जितना अधिक गहराई में उतरते जाओ,  उतने ही विपुल और नित्य नवीन शब्द और उनके विस्मित कर देने वाले अर्थ स्वतः ही आपके समक्ष उपस्थित होते जाते है_, वैसे ही हर रात एक नवीन याद अपनी गहराई के अनुसार एक अलग ही कहानी कह जाती है और मुझे असीमित आनंद की गहराइयों में डुबोती चली जाती है_ _ और जैसे ही मैं उनकी तह छूने को होता हूँ, भोंर की धुंधली सी धूप गुनगुनाते हुए आती है और मेरा हाथ पकड़कर मुझे बाहर  खींच लाती है_ _ और हर रात एक अधूरी याद बनकर रह जाती है।

                                                                                                      -   वृद्ध  सहस्त्र वर्षों का बालक कच्छप...!






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