Sunday 3 February 2019

प्रेम का वीभत्स रूप


कुछ साल पहले, एक रिश्ता टूटा था, कुछ इस तरह कि उसके टूटने की ख़ामोशी के शोर से बचने की कोशिश में उसकी कुछ किरचें मन में चुभ गई, जिससे मन की ज़मीन पर एक गहरा ज़ख्म उभर आया। 

कहते है.. कि समय के साथ हर ज़ख्म भर जाता है, ठीक उसी तरह इसे भी भर जाना चहिये था, लेकिन_ कुछ उल्टा हुआ; समय के साथ ये ज़ख्म और अधिक गहरा होता गया। तीख़ीं, नुकीली किरचें, जो चुभी थी मन की कोमल ज़मीन में, उन्हें निकालने की मैं जितनी नाकाम कोशिश करती, वो उतनी ही गहराई में उतरती जाती और ज़ख्म को और अधिक गहरा करती जाती। अंततः वो ज़ख्म नासूर बन गया, एक कभी न भरने वाला लाइलाज़ ज़ख्म और चारों ओर फैलने लगी_ उस ज़ख्म की सड़न और बदबू..!!

तभी अचानक_! एक और मन मेरे मन के करीब आया। उसकी धरती पर उगे प्रेम के बीज को मेरे मन की नासूर धरती पर उगाने। बोला वह कि "सिर्फ प्रेम का वृक्ष ही इस नासूर को भर सकता है और उस पर जो फूल खिलेंगे, उनकी खुश्बू से ये दुर्गन्ध भी चली जायेगी। मेरे मन की धरती दोबारा से हरी-भरी होकर महकने लगेगी।"

उस दूसरे मन ने मेरे मन की धरती पर प्रेम का बीज तो डाल दिया, लेकिन उसकी देख-रेख करना और उसे संरक्षण देना भूल गया। 

किन्तु बीज़ तो नासूर बनी उस वीभत्स दलदली ज़मीन में, नुकीली किरचों के बीच जा धँस गया था, तो उससे पेड़ निकलना भी स्वाभाविक था। बस हुआ ये कि ज़ख्म के काले पीप रुपी जल और तपे हुए अश्रुओं के खार की खाद उसे मिली और उसी से उसकी परवरिश और विकास हुआ। 

आज मन की उस नासूर ज़मीन पर लगे प्रेम के वीभत्स वृक्ष में फूल आये है, जिनकी काँटों से भी तीख़ी-नुकीली पंखुड़ियों ने गिरकर मन की भूमि को और अधिक ज़ख़्मी कर दिया है और उन फूलों से निकली दुर्गन्ध से मन के अंतर में बसा पूरा स्वप्न संसार दूषित हो गया है। 

"टूटा रिश्ता, उसकी नुकीली किरचें, चुभी किरचों से बने ज़ख्म, ज़ख्मों से बना नासूर, उस नासूर में उगा वीभत्स प्रेम वृक्ष और उस वीभत्स वृक्ष के दुर्गन्धित कांटेदार पुष्प...!" एक कोमल मन का पूरा का पूरा स्वप्न लोक संक्रमित कर गए। निराशा के बादल इतने काले और घने हो गए कि आशा की किरण का प्रकाश भी पी गए।

प्रेम का इतना वीभत्स रूप भी होता है, ये पता न था मुझे..!! 


                                           -iCosmicDust (निकिता)