Saturday 18 November 2017

तब से है तुमसे प्यार प्रिये...!



जब दूसरी कक्षा में पहली बार
तुम दाख़िला लेकर आई थी_
नेकर शर्ट पहने, बैठकर बगल की बेंच पर_
मुझ पर टेढ़ी नज़र गिराई थी_
तब से है तुमसे प्यार प्रिये...!
तब से है तुमसे प्यार प्रिये...!

हर रोज़ शाम को मोहल्ले की कंकरीली गलियों में
जब हम कंचे खेला करते थे
और मैं रोज़ जाता था हार प्रिये..!
तब से है तुमसे प्यार प्रिये...!
तब से है तुमसे प्यार प्रिये...!

जब हम फिरकी लट्टुओं की जंग लड़ाया करते थे
और उछालकर हाथ में लेना आ जाए
तो ख़ुशी से इतराया करते थे
उस फिरकी लट्टु की हाथों में गुदगुदी के अहसास के
जैसा था ये प्यार प्रिये..!
तब से है तुमसे प्यार प्रिये...!

जब प्रतियोगिता के नाम पर
हम कक्षा की पढ़ाई छोड़ देते थे
और आवारा से पूरे स्कूल में घूमा करते थे
तब मेरा ये सभ्य मन भी
हो गया था आवारा
तेरे प्यार में प्रिये..!
कि तब से है तुमसे प्यार प्रिये...!   

जब अमरुद की कच्ची शाखों पर
तुम बेखौफी से चढ़ जाती थी
और संतरों को बगीचों से चोरी कर
अपनी नेकर की जेबों को
पूरा उनसे भर लाती थी
तुम्हारी इस बेख़ौफ़ी को मैं बस
रहता था एकटक निहार प्रिये..!
कि तब से है तुमसे प्यार प्रिये...!

जब तीखी गर्मी की तपिश में भी
हम लंगड़ी पाला खेला करते थे
और मूसलाधार बारिश में सराबोर हो
साइकिल से रेस लगाया करते थे
तब मेरे मन की सुर्ख़ भूमि पर भी
आ गई थी प्रेम की बाढ़ प्रिये..!
असीमित हो गया था तुमसे
ये प्यार प्रिये..!

कड़ाके की सर्दी में जब हम
पतंग उड़ाया करते थे
और तुम अपनी अल्हड़ पतंग से
सूरज को छूने की कोशिश करती थी_
तुम थी वो मेरी अल्हड़ पतंग
किन्तु कोई था ना मांझा, ना डोरी, ना ही कोई तार प्रिये..!
था सिर्फ मेरा निश्छल प्यार प्रिये..!
कि तब से है तुमसे प्यार प्रिये...!

जब एक अनाथ शिशु का रुदन सुन
अनायास ही तुम उसकी माँ बन गई
और समाज की दुत्कार को सुन
चुपचाप ही कहीं दूर चली गई
तब ये कायर मन तुमसे कह भी न सका
कि करता हूँ मैं तुमसे प्यार प्रिये..!
कि करता हूँ मैं तुमसे प्यार प्रिये..!

अब_
जीवन की तपाग्नि में तपकर
उम्र की पगडण्डी पर चलकर
यह कहने को
आया हूँ आज तुम्हारे पास_
कि जब तुम इन नन्हें अनाथ बच्चों के संग
किलकारियों सी हँसती हो
तो उसकी ऊर्जा से
मेरे अंतर्मन का इकलौता सूरज_
देदीप्यमान हो जाता है
और उसकी मधुर ध्वनि से शरीर का
कण - कण गुंजायमान हो जाता है
इतना करता हूँ मैं तुमसे प्यार प्रिये..!
कि तुम्हारी चंचलता, निडरता, शौर्य और उत्साह
से है मुझे ये प्यार प्रिये..!
कि करता हूँ मैं तुमसे प्यार प्रिये..!
अधेड़ उम्र के इस अधीर मन का
यह प्रणीत अनुग्रह
अब कर भी लो स्वीकार प्रिये..!
कि कच्ची केरी सा खट्टा और पके आम सा मीठा
है ये तेरा प्यार प्रिये..!


         - iCosmicDust(निकिता पोरवाल)